गाज़ा - हामास और पीड़ित नागरिक
गाज़ा पर जब भी इज़रायल कार्रवाई करता है, पूरी मुस्लिम दुनिया सड़कों पर आ जाती है। लेकिन इस तस्वीर का एक और पहलू है। हामास, जिसे कई देशों ने आतंकवादी संगठन घोषित किया है, गाज़ा में न सिर्फ़ राजनीतिक बल्कि सैन्य रूप से भी सक्रिय है। आम नागरिकों के बीच से ही हथियारों का जखीरा, सुरंगों का जाल और रॉकेट लॉन्चिंग की खबरें आती हैं।
आरोप यह भी हैं कि इज़रायल द्वारा डाली गई पानी की पाइपलाइन को हामास ने उखाड़ कर उन्हीं पाइपों से रॉकेट बनाए।
तब गाज़ा के लोगों ने चुप्पी साधी, लेकिन जब जवाबी कार्रवाई में नुकसान होता है तो वही लोग "मासूमियत" का तर्क देते हैं।
सच्चाई यह है कि गाज़ा के आम लोग दोहरी मार झेलते हैं - एक तरफ़ हामास का दबाव और दूसरी तरफ़ इज़रायल की जवाबी कार्रवाई।
यमन - भूख और बीमारी पर खामोशी
यमन में वर्षों से युद्ध चल रहा है। लाखों लोग भूख और बीमारी से मारे गए हैं, अस्पताल ध्वस्त हो चुके हैं। यह संकट पूरी तरह से मुस्लिम आबादी पर है, लेकिन मुस्लिम जगत के देशों और नेताओं से कोई बड़ा विरोध सुनाई नहीं देता।
अफगानिस्तान में तालिबान और महिलाओं की हालत
अफगानिस्तान में तालिबान राज आने के बाद महिलाओं को शिक्षा और काम से वंचित कर दिया गया है। लड़कियों को स्कूलों से निकाला गया और सार्वजनिक जीवन से काट दिया गया। इस पर भी मुस्लिम जगत चुप रहता है।
सीरिया और अलावाइटों पर अत्याचार
सीरिया में वर्षों से संघर्ष जारी है। हाल ही में अलावाइट समुदाय पर बड़े पैमाने पर हमले हुए, गांव जलाए गए और पहचान के आधार पर लोगों की हत्या की गई। यहां भी मुस्लिम जगत की आवाज़ कहीं सुनाई नहीं दी।
उइगर मुसलमान - चीन पर कोई सवाल नहीं
चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों पर वर्षों से दमन हो रहा है। कैम्पों में कैद, जबरन मजदूरी, धार्मिक स्वतंत्रता पर पाबंदी और परिवारों का बिछड़ना documented है। फिर भी मुस्लिम जगत चुप है क्योंकि चीन आर्थिक और राजनीतिक ताकत देता है।
पाकिस्तान और बलोचिस्तान
पाकिस्तान हर मंच पर "कश्मीर" का मुद्दा उठाता है, लेकिन बलोचिस्तान और POK में वह खुद क्या कर रहा है? वहां लोगों का जबरन गायब होना और सेना का दमन रोज़मर्रा की हकीकत है। मुस्लिम जगत इन पीड़ित बलोच मुसलमानों के लिए आवाज़ क्यों नहीं उठाता?
निष्कर्ष
फिलिस्तीन के नाम पर शोर मचाना आसान है, लेकिन यमन, अफगानिस्तान, बलोचिस्तान, सीरिया और उइगर मुसलमानों पर चुप्पी यह साबित करती है कि यह संघर्ष इंसानियत का नहीं बल्कि राजनीति और एजेंडे का खेल है। जब तक यह दोहरा चरित्र खत्म नहीं होगा, मुस्लिम जगत की "इंसाफ" की बातें खोखली ही लगेंगी।