क्या भारतीय पत्रकारिता गुस्से की लत में फँस चुकी है
यह लेख बताता है कि कैसे newsroom incentives, सोशल मीडिया dynamics और दर्शकों की मांग ने खबरों को गुस्से के चक्र में बदल दिया है और क्या कदम इस दिशा बदल सकते हैं

1. अनुभव - newsroom अब नाटक जैसा लगता है
एक शाम newsroom में दबाव साफ दिख रहा था। producer ने कहा कि TRP नीचे जा रही है और कुछ तेज चाहिए। anchor ने आवाज तेज की और panel पर बहस शुरू हो गई। छोटी सी घटना national drama बन गई। यह निजी अनुभव नहीं, बल्कि कई चैनलों पर बार-बार दिखने वाला पैटर्न है। जो पल engagement बढ़ाए वह editorial में ज्यादा जगह पाता है।
गाँव के चाय वाले ने कहा कि news channels अब wrestling जैसा मजा देते हैं। पहले खबर लोगों को सोचने पर मजबूर करती थी, अब वे तुरंत प्रतिक्रिया दिखाते हैं।
2. विशेषज्ञता - आंकड़े क्या दिखाते हैं
डेटा इस चिंता को पुष्ट करता है। Reuters Institute 2024 Digital News Report बताती है कि करीब 69 प्रतिशत लोग भारत में news fatigue महसूस करते हैं। ऑनलाइन खबर देखना बढ़ रहा है पर भरोसा घट रहा है। लगभग 38 प्रतिशत ही खबरों पर भरोसा करते हैं। यह संकेत है कि स्वर और स्वरूप पाठकों की उम्मीद पर खरी नहीं उतर रहे हैं।
BARC India के viewership डेटा में भी वही ट्रेंड दिखता है। शीर्ष हिंदी चैनलों पर वे सेगमेंट जिनमें तीखी बहस होती है, प्राइमटाइम में अधिक दर्शक जोड़ते हैं। मतलब outrage eyeballs खींचता है। advertisers eyeballs के पीछे आते हैं और newsroom की प्राथमिकताएँ बदल जाती हैं।
सोशल प्लेटफॉर्म्स पर pace और तेज है। हैशटैग जल्दी बदलते हैं। एक दिन boycott चल रहा है, अगले दिन save ट्रेंड। परिणाम यह है कि कई घटनाएँ भावनात्मक कथा बन कर फैलती हैं, भले वे बाद में कमजोर साबित हों।
3. प्रामाणिकता - सिस्टम ही संदेश आकार देता है
संपादक और निर्माता जानते हैं क्या बिकता है। शांत रिपोर्टिंग अच्छी हो सकती है पर अक्सर algorithm और revenue की लड़ाई में पीछे रह जाती है। हेडलाइनें provoke करने के लिए डिज़ाइन होती हैं। शब्द जैसे shocking, exposed, controversy अक्सर इस्तेमाल होते हैं क्योंकि वे क्लिक और शेयर बढ़ाते हैं। यह षड्यंत्र नहीं बल्कि predictable परिणाम है जब metrics कंटेंट निर्णय तय कर रहे होते हैं।
कुछ पत्रकार और छोटे आउटलेट अभी भी context समृद्ध रिपोर्टिंग करते हैं। वे जाँच करते हैं, फ़ील्ड में जाते हैं और समझाते हैं। पर उनकी पहुंच कम रहती है। ध्यान scarce resource है और तीव्र सामग्री अक्सर जीत जाती है। यही व्यवस्था sensationalism की ओर झुकती है।
एक पूर्व संपादक का अनुभव यह स्पष्ट करता है कि शांत रिपोर्टिंग बाजार में ज्यादा नहीं बिकती। यही वजह है कि कई newsroom चर्चा और विवाद को प्राथमिकता देते हैं।
4. अनुभव की परत - सोशल मीडिया शोर को तेज करता है
समाचार का स्रोत भी बदल गया है। पहले रिपोर्टर verify करते थे, अब timelines और viral clips कहानी तय करते हैं। WhatsApp forward या unverified clip कभी-कभी coverage की शुरुआत बन जाता है। newsroom उन signals पर तुरंत प्रतिक्रिया करते हैं बजाय रोक कर पुष्टि करने के।
थंबनेल और विजुअल्स प्रभाव को बढ़ाते हैं। चमकीले ग्राफिक्स और शब्द users को तुरंत क्लिक के लिए प्रेरित करते हैं। यह feedback loop platforms और publishers के लिए तेज़ रेवेन्यू देता है और पैटर्न दोहराने को बढ़ावा देता है।
5. विश्वास - rage economy से truth economy की ओर
कोई तेज़ समाधान नहीं पर कुछ व्यावहारिक कदम मदद कर सकते हैं ताकि incentives सार्वजनिक हित की रिपोर्टिंग की ओर लौटें
- context वापस लाना - हर स्टोरी में यह स्पष्ट करें कि यह क्यों महत्वपूर्ण है और यह बड़े पैटर्न में कैसे बैठती है
- constructive reporting को महत्व - समस्याओं के साथ समाधान और जवाबदेही भी दिखाएँ
- slow news का समर्थन - follow up और verification में निवेश करें भले वह तुरंत viral न हो
- पाठकों के व्यवहार को बदलना - publishers users को share करने से पहले pause करने के लिए प्रेरित करें और verified reporting हाइलाइट करें
वाणिज्यिक दबाव वास्तविक हैं। गुस्सा क्लिक और रेवेन्यू लाता है पर दीर्घकालिक भरोसा अलग संपत्ति है। समाचार संस्थाएँ जो short term traffic को दीर्घकालिक वैधता समझ बैठें वे credibility खो सकती हैं जो पत्रकारिता को अर्थ देती है।
6. निष्कर्ष - पत्रकारिता का मोड़
भारतीय पत्रकारिता crossroads पर है। एक राह sensationalism और तुरंत प्रतिक्रिया की है, दूसरी राह credibility और शांत व्याख्या की। हर संपादक और समाचार संगठन को तय करना होगा कि वे किस अर्थव्यवस्था की सेवा करते हैं। अगर चुनाव outrage का किया गया तो सत्य noise में दब जाएगा। अगर चुनाव truth का किया गया तो पाठक फिर एक ऐसी खबर प्रणाली पाएँगे जो सूचित करे और सोचने पर मजबूर करे।
लेख © 2025 Desi Radar. स्रोत: Reuters Institute 2024, BARC डेटा सारांश, newsroom interviews और field observations.