How WhatsApp became India’s biggest newsroom
कभी खबरें अखबार छापते थे, फिर टीवी ने चीखना शुरू किया। अब खबरें किसी का फॉरवर्ड किया हुआ संदेश बन चुकी हैं। आज भारत में लगभग हर दूसरे फोन में WhatsApp है और हर दूसरा व्यक्ति खुद को पत्रकार समझने लगा है। फर्क इतना है कि अब रिपोर्टर के पास न mic है, न facts – बस एक forward बटन है।

WhatsApp – भारत का सबसे सस्ता newsroom
किसी ने कहा था, "भारत में दो चीज़ें हर जगह मिलती हैं – पानी और WhatsApp group।" पंचायत से लेकर प्रधानमंत्री तक, हर जगह कोई admin मौजूद है जो “देश की सच्चाई” फैलाता है। यह newsroom बिजली या इंटरनेट से नहीं, भरोसे से चलता है। और भरोसा यहाँ logic से नहीं, भेजने वाले से तय होता है। अगर संदेश मामा जी ने भेजा है, तो वह सच है।
जब हर फोन अखबार बन गया
WhatsApp ने पत्रकारिता को लोकतांत्रिक बनाया, लेकिन हर व्यक्ति के पास संपादन की समझ नहीं। अब सत्यापन की जगह वायरल होना जरूरी है। किसी की फोटो को दूसरे संदर्भ में भेजना या पुरानी वीडियो को नई बताना – यही टीआरपी है। अब चैनल नहीं, WhatsApp group तय करते हैं कि कौन सी खबर चलेगी।
राजनीति और प्रचार – सबसे बड़े subscriber
राजनीति ने WhatsApp को सबसे ताकतवर हथियार बना दिया। हर चुनाव में हजारों IT Cell groups बनते हैं जिनका एक ही मकसद है – कथा गढ़ना। कभी विपक्ष की बदनामी, कभी अपनी छवि चमकाना। यहाँ campaign सीधे जेब तक पहुँचता है। कोई moderation नहीं, कोई questioning नहीं – बस भावनाएँ और emojis।
गाँव से विदेश तक एक ही narrative
पहले गाँवों में खबरें डाकिया लाता था, अब वही खबरें "forwarded many times" के रूप में आती हैं। अमेरिका में WhatsApp चैट का ऐप है, पर भारत में यह समाचार तंत्र है। यहाँ जानकारी देने से ज़्यादा राय बनाने का काम होता है। जो trend करता है वही सच बन जाता है, जो meme चलता है वही जनता की भावना।
असली समस्या – भरोसे की भूख
भारत में WhatsApp इसलिए सफल हुआ क्योंकि हम भरोसे के भूखे हैं। हम institution पर नहीं, रिश्तों पर भरोसा करते हैं। टीवी झूठ बोल सकता है, पर “मेरे कजिन ने भेजा है” झूठ नहीं हो सकता। यही दरार misinformation को बढ़ाती है। कोई खबर सच लगती है क्योंकि उसमें अपना आदमी दिखता है।
WhatsApp University – डिग्री सबको मिली है
अब WhatsApp University भारत की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी है। इसकी syllabus हर दिन बदलती है – कभी health tips, कभी इतिहास, कभी धर्म, कभी राजनीति। क्लास अटेंडेंस 100% है, fact-check 0%। हर सुबह लाखों लोग “forwarded message” पढ़ते हैं और वही तय करता है उनका मूड, सोच और वोट।
अब सवाल – समाधान क्या है
WhatsApp को दोष देना आसान है, लेकिन असली गलती हमारी collective laziness में है। हमने पढ़ना छोड़ा, सोचना छोड़ा, बस शेयर करना सीखा। अगर सच्ची खबर चाहिए तो curiosity को फिर से ज़िंदा करना होगा। जो पढ़े, वो पूछे भी। जो माने, वो जांचे भी। हर संदेश सूचना नहीं, जिम्मेदारी है। अगर हम उसे आँख मूँदकर आगे बढ़ा रहे हैं तो हम खुद उस शोर का हिस्सा हैं जो सच्चाई को डुबो देता है।
निष्कर्ष – खबर का लोकतंत्र या अफवाह का राज
WhatsApp ने भारत को जोड़ा, पर उसने सच्चाई को भी तोड़ा। अब असली चुनौती connectivity नहीं, credibility की है। हम सब पत्रकार हैं, लेकिन साझा करना और सच फैलाना दो अलग बातें हैं। खबरें अब मोबाइल में नहीं, दिमाग में verify होनी चाहिए।
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