How Government Schools Became Election Backdrops | Desi Radar
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Published: 8 October 2025

कैसे सरकारी स्कूल बन गए चुनावी मंच?

Desi Radar Editorial • 8 October 2025 • Education & Society

सरकारी स्कूल अब पढ़ाई की जगह से बढ़कर राजनीति का मंच बनते जा रहे हैं। चुनाव के समय ये इमारतें प्रचार, मतदान और photo op का सेट बन जाती हैं, जिससे सही समय पर पढ़ाई बाधित होती है और बच्चों की पढ़ाई में नुकसान होता हैै।

Government schools used during elections

1. अनुभव - चॉक की जगह बैनर

हर चुनाव के वक्त मेरे गाँव का सरकारी स्कूल सबसे पहले बदलता है। कभी दीवारें नई पेंट से रंग जाती हैं, कभी कमरे में कुर्सियाँ लगती हैं और कभी मैदान में लाउडस्पीकर। बच्चों की कक्षाएँ रुक जाती हैं क्योंकि वहाँ मतदान हो रहा होता है। जहाँ पहले बच्चे 'स' से 'सपना' लिखते थे, वहाँ अब नेता भाषण दे रहे होते हैं। यह सिर्फ मेरे गाँव की घटना नहीं है, यह देशभर की सच्चाई है।

2. विशेषज्ञता - आंकड़ों की गवाही

भारत में लगभग 10 लाख सरकारी स्कूल हर पाँच साल पर मतदान केंद्र के रूप में उपयोग होते हैं। विभिन्न सरकारी रिपोर्ट और चुनाव आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि आम चुनावों के दौरान औसतन 4 से 6 दिन की कक्षाएँ बाधित होती हैं। Election Commission इन स्थानों को सुविधाजनक मानता है क्योंकि वहाँ बिजली, पानी और सुरक्षा मिलती है, पर छोटे बच्चों के लिए यह स्थायी नुकसान बन सकता है।

3. प्रामाणिकता - शिक्षा का सियासी इस्तेमाल

सरकारी अधिकारी और नेता चुनावी मिटिंग्स के लिए इन स्कूलों का शोकेस करते हैं। एक दौरे के बाद स्कूल की दीवारें रंग जाती हैं, नया बोर्ड लग जाता है और कैमरा रिपोर्ट चल जाता है। मीडिया हेडलाइन बनाती है कि सरकारी स्कूलों की हालत सुधर रही है। पर जब प्रचार खत्म होता है, तो कई बार वही टूटी बेंचें और टपकती छतें वापस दिखती हैं। कई बार सुधार दिखावा जैसा लगता है, वास्तविक रखरखाव स्थायी नहीं रहता।

4. विश्वास - समाधान और संतुलन

यह समस्या किसी एक सत्ता की नहीं है, यह सिस्टमिक पैटर्न है। समाधान के कुछ सुझाव सरल और प्रभावी हैं:

  • Election Commission और Education Department मिलकर स्थायी विकल्प तय करें ताकि स्कूलों की पढ़ाई बाधित न हो
  • उन स्कूलों में जहाँ चुनाव होते हैं, अतिरिक्त शिक्षण दिवस जोड़े जाएँ ताकि खोया हुआ सिलेबस पूरा हो सके
  • टीचर्स को प्राथमिकता से पढ़ाई की ड्यूटी दी जाए, और चुनावी ड्यूटी के विकल्प खोजे जाएँ
  • स्कूलों के स्थायी रखरखाव का रिकॉर्ड सार्वजनिक किया जाए ताकि केवल फोटो ऑप के लिए न सजाया जाए

निष्कर्ष - लोकतंत्र की क्लास फिर शुरू हो

चुनाव लोकतंत्र का त्योहार है, पर शिक्षा उसकी आत्मा है। अगर हर चुनाव के बाद स्कूल फिर पुराने हाल में लौट आएँगे, तो हमने बच्चों के भविष्य के साथ सौदा कर लिया है। सच्चा लोकतंत्र वही होगा जहाँ स्कूल केवल वोट डालने की जगह नहीं, बल्कि सीखने और सोचने की जगह बने रहें।


लेख © 2025 Desi Radar. Sources: Election Commission reports, government data and field observations.